उनकी शिकायत के प्रमुख बिन्दु निम्न है,
- सरकार अभी बहुमत मे नहीं है, और उसने गलत ढंग से अध्याधेश पारित करवाया है, यह पहल अवैध है।
- जनहित याचिका मे ये शिकायत हुई है की इतना महत्वपूर्ण कानून बनाने की प्रक्रिया मे संसद की उपेक्षा हुई है।
- विधेयक संसद के पटल पर रखा जा चुका है, लेकिन चुनावी फायदे के लिए सरकार ने अध्याधेश की जल्दी दिखाई है।
वैसे लगता नहीं है की न्यायालय सरकार के फैंसले के बीच मे आएगा। क्यूंकी अध्याधेश लाना सरकार के क्षेत्राधिकार मे हैं, राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर भी कर दिये हैं, अब न्यायालय मुश्किल ही हस्तक्षेप करेगा। क्यूंकी राष्ट्रपति की भूमिका के बाद न्यायालय राजनीति मे नहीं पड़ना चाहेगी। इसमे चुनाव आचार संहिता उलंघन का मामला भी नहीं बनता। और यदि न्यायालय सरकार को कोई सलाह दे भी देता है तो सरकार पहले भी न्यायालय की सलाह को किनारे पर रख चुकी है।
एक बात और
ये वही सरकार है जिसने जनलोकपाल पारित करवाने के लिए संसद मे बिल प्रस्तुत किया था। इससे स्पष्ट है की सरकार जनलोकपाल के लिए गंभीर नहीं थी। यदि होती तो शायद जनलोकपाल भी इसी तरह से पारित करा चुकी होती।
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