दरअसल मुलायम और माया तो अपनी पार्टियों के अध्यक्ष हैं वहीं नरेंद्र मोदी बीजेपी के तो राहुल कांग्रेस के स्टार चेहरे हैं। आखिर वो प्रदेश किस विचारधारा या पार्टी को तवज्जो देगा जो देश की संसद में सबसे ज्यादा सांसदों को चुन कर भेजता है। कहते हैं जिसने उत्तर प्रदेश जीत लिया उसने देश पर हमेशा ही राज किया है तो अगर आम चुनाव इस वक्त हो जाएं तो प्रदेश में किसका डंका बजेगा।
ओपनियन पोल के नतीजे दो बातें साफ बता रहे हैं:-
पहला- एक साल के भीतर ही अखिलेश सरकार ने अपनी लोकप्रियता गंवा दी है।
दूसरा- समाजवादी पार्टी को नुकसान तो सीधा फायदा बीजेपी का। प्रदेश में कमल खिलने को बेताब है।
चौंकाने वाला आंकड़ा वोट शेयर का है। सबसे आगे है बीजेपी, नरेंद्र मोदी के मोदित्व में डूबी इस पार्टी को 27 फीसदी वोट मिल सकते हैं। पिछली बार के मुकाबले 9 फीसदी ज्यादा वोट। वहीं राज्य में मौजूदा सरकार चला रही समाजवादी पार्टी को 22 फीसदी वोट मिल सकते हैं। पिछली बार के मुकाबले 1 फीसदी कम। जबकि मायावती की बीएसपी को भी 21 फीसदी तक वोट नसीब हो सकते हैं। ये वोट भी पिछली बार के मुकाबले 1 फीसदी कम हैं। प्रदेश में दोबारा खड़ा होने की पुरजोर कोशिश में लगी कांग्रेस 16 फीसदी वोट पा सकती है। पिछली बार पार्टी को 2 फीसदी ज्यादा वोट मिले थे। अजित सिंह की आरएलडी सिर्फ 1 फीसदी वोट ही पा सकती है। पिछली बार के मुकाबले उसका वोटबैंक 2 फीसदी घट सकता है। वहीं अन्य और निर्दलीयों के वोट 3 फीसदी तक बढ़ सकते हैं। इस बार उनपर 13 फीसदी तक वोट पड़ सकते हैं।
आखिर उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा की सीटों में कौन कितनी ले जा सकता है। आईबीएन7 सर्वे के मुताबिक अगर अभी चुनाव हों तो बीजेपी उत्तर प्रदेश में 29 से 33 सीटें तक जीत सकती है। 2009 की 10 सीटों के मुकाबले पार्टी तीन गुना ज्यादा सीटें जीत सकती हैं। वहीं सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को 17 से 21 सीटें तक मिल सकती हैं। 2009 में पार्टी को प्रदेश से 22 लोकसभा सीटें हासिल हुई थीं। बीएसपी का हाथी 14-18 सीटें झटक सकता है, जबकि पिछली बार उसे 20 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को सिर्फ 11 से 15 सीटें मिलने के आसार हैं, जबकि पिछले आम चुनाव में राहुल गांधी के ताकत लगाने से पार्टी को 22 सीटें मिली थीं। आरएलडी को 2 सीटें मिल सकती हैं। पिछली बार पार्टी का खाता तक नहीं खुला था।
सर्वे साफ कह रहा है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस चमक खोती दिख रही है। वहीं बीजेपी चमक पाती नजर आ रही है। समाजवादी पार्टी का जलवा-जलाल ढलान पर आ सकता है। 26 फीसदी लोग ही अखिलेश सरकार को बेहतर मान रहे हैं। जबकि 29 फीसदी का कहना है कि माया सरकार बेहतर है। लेकिन मुलायम के लिए अच्छी खबर ये है कि 46 फीसदी मुस्लिम अखिलेश सरकार से संतुष्ट हैं तो अन्य पिछड़ा वर्ग के 30 फीसदी वोटर भी राज्य सरकार से संतुष्ट हैं।
सवाल है कि ये नाराजगी क्यों है। इसकी पड़ताल के लिए अलग-अलग मुद्दों पर जनता की राय मांगी गयी। जहां तक रोजगार के मौकों का सवाल है 41 फीसदी लोग कहते हैं कि कोई बदलाव नहीं लेकिन 30 फीसदी का मानना है कि रोजगार दरअसल घटे हैं। हत्या, अपहरण और अपराध के बारे में 45 फीसदी का कहना है कि ये भी बढ़े हैं। 32 फीसदी लोगों का कहना है कि प्रदेश में जातिगत हिंसा बढ़ी है। हालांकि 44 फीसदी के मुताबिक इसमें बदलाव नहीं आया।
51 फीसदी लोगों का कहना है कि यूपी में गुंडागर्दी बढ़ी है। जहां तक हिंदु मुस्लिम भाई-चारे का सवाल है तो 54 फीसदी उसमें कोई बदलाव नहीं देखते। विकास की रफ्तार में भी 42 फीसदी लोग कोई बदलाव नहीं देख रहे हैं।
एक अहम सवाल ये भी कि अखिलेश हो मुख्यमंत्री या फिर मुलायम। ज्यादातर पुत्र के मुकाबले अनुभवी पिता को ही सत्ता में देखना चाहते हैं। 53 फीसदी चाहते हैं कि मुलायम संभालें यूपी की कमान। 67 फीसदी समाजवादी पार्टी समर्थक भी मुलायम को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। 66 फीसदी यादव वोटरों की राय में मुलायम ही बनें मुख्यमंत्री, 49 फीसदी मुसलमान भी मुलायम को ही सीएम देखना चाहते हैं।
जब सवाल पूछा गया कि किस पार्टी में है सुशासन और अपराध रोकने का दम तो जवाब में, कांग्रेस को 13 फीसदी लोग सुशासन और 11 फीसदी अपराध रोकने में कामयाब मानते हैं। जबकि बीजेपी को 28 फीसदी सुशासन और 25 फीसदी अपराध नियंत्रण में कामयाब मानते हैं। वहीं समाजवादी पार्टी को 16 फीसदी लोग ही सुशासन के काबिल मानते हैं और अपराध नियंत्रण में सिर्फ 12 फीसदी।
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