मीडिया मे कल से खबर चल रही है की इशरत आतंकी नहीं थी, मुठभेड़ फर्जी निकली। एक तरह से ऐसा लग रहा है की जैसे इस मामले मे कोई फैंसला आ गया हो। जबकि ये सिर्फ सीबीआई के आरोप मात्र है जो भी फैंसला होगा न्यायालय करेगा। जिस तरह से सीबीआई ने सात अधिकारियों के खिलाफ जांच के आधार पर फर्जी मुठभेड़ की के आरोप लगाए हैं उसी तरह कोई भी अपने ज्ञान और सोच के आधार पर सीबीआई पर आरोप लगा सकता है की सीबीआई के ये आरोप किसी जांच के आधार पर नहीं बल्कि मे किसी के दिशा निर्देश पर लगाए गए हैं।
मुठभेड़ फर्जी थी या असली ये अभी भी "कथित" ही है। क्यूंकी जिस तरह से पुलिस अधिकारियों को दण्ड देने का और मारने का अधिकार नहीं है उसी तरह से सीबीआई को भी फैंसला सुनाने का अधिकार नहीं है।
सीबीआई की चार्जशीट के आधार पर पूरे देश का मीडिया सीबीआई के आरोपों को ही फैंसला समझकर ये खबर चला रहा है की मुठभेड़ फर्जी थी और इशरत आतंकी नहीं थी।
सबसे मुख्य बात ये हैं की सीबीआई ने अपने आरोपों मे सिर्फ मुठभेड़ का जिक्र किया है। मरने वाले आतंकी थे या नहीं इसका कहीं कोई जिक्र नहीं है, लेकिन फिर भी मीडिया मे खबरे चल रही है की सीबीआई ने इशरत-जहां को आतंकी नहीं बताया।
सीबीआई ने आरोप लगाए हैं तो अदालत विचार करेगी फिर अंतिम फैंसला होगा। भारतीय मीडिया का बहुत ही गैर-जिम्मेदाराना और पक्षपाती रवैया दिखाई दिया है। इससे बड़ी हास्यसपद बात क्या होगी की कुछेक अखबारों को छोडकर सभी अखबार वालों ने भी सीबीआई के आरोपों को फैंसला माना है।
जबकि सीबीआई ने अपने आरोपों के अंत मे साफ साफ लिखा है की "जनता को सूचित किया जाता है इस मामले मे लगाए गए आरोप एकत्रित किए गए साक्ष्यों और जांच के आधार पर लगाए गए हैं। भारतीय कानून के आरोपित व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक की न्यायालय मे निष्पक्ष सुनवाई के बाद दोषी सिद्ध नहीं हो जाये।
सीबीआई की चार्जशीट के बाद की प्रेस रिलीज |
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