ग्लोबल इन्वेस्टर्स भारत सरकार और इसकी नीतियों को लेकर खासे चिंतित हैं। उनका कहना है कि सरकारी पॉलिसीज मौजूदा संकट का सामना करने में नाकाम रही हैं, जिसका असर इक्विटी और बॉन्ड मार्केट्स पर पड़ा है। दिग्गज निवेशक और ग्लूम ब्लूम ऐंड डूम रिपोर्ट के लेखक मार्क फेबर का कहना है कि कुल मिलाकर भारत सरकार की इकनॉमिक पॉलिसीज असफल रही हैं। ईटी के बिश्वजीत बरुआऔर बैजू कलेश को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि लंबी अवधि में रुपए को लेकर मेरा रुझान नकारात्मक है। प्रस्तुत हैं इसके मुख्य अंश:
ग्लोबल इन्वेस्टर्स ने पिछले तीन महीने में इक्विटी और डेट मार्केट से 11 अरब डॉलर से ज्यादा की रकम निकाली है। क्या भारत में अब भी इन्वेस्टमेंट के मौके बचे हुए हैं?
पिछले कुछ वर्षों में इन्वेस्टर्स ने भारतीय मार्केट से मिलने वाले रिटर्न को लेकर हकीकत से परे उम्मीदें बांधी थी। अगर आप भारत की मैक्रो इकॉनमी पर नजर डालें तो चीन की तुलना में इसका प्रदर्शन कमजोर रहा है। हालांकि, कॉर्पोरेट स्तर पर कई भारतीय कंपनियों ने काफी अच्छा परफॉर्म किया है और अपने शेयरहोल्डर्स को रिवार्ड भी दिया है। बतौर इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन भारत में अब भी इन्वेस्टमेंट के मौके हैं।
भारत सरकार के किन कदमों को लेकर आप निराश हैं?
मैक्रो इकनॉमिक मोर्चे पर मैं भारत को लेकर बहुत आशावादी नहीं हूं और इसका सीधा नाता सरकारी नीतियों से है। भारत सरकार की आर्थिक नीतियां असफल रही हैं। सरकार को और कोशिशें करनी चाहिए थीं। मौजूदा सरकार को देखते हुए यह आश्चर्य ही है कि इकॉनमी ने इतना बेहतर प्रदर्शन किया है।
भारतीय इकॉनमी संकट के दौर से गुजर रही है, मौजूदा इकनॉमिक क्राइसिस से निपटने के लिए आपके क्या सुझाव हैं?
भारत सरकार ने एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है, क्योंकि इसने इन्फ्लेशन या कॉस्ट ऑफ लिविंग की दरों में हुई बढ़ोतरी को नजरअंदाज किया है। इन्फ्लेशन का सही मायने में आकलन न करने के बावजूद सरकार ने रियल टर्म में इंटरेस्ट रेट्स निगेटिव रखी। इस वजह से फिस्कल डेफिसिट काफी ज्यादा है, ट्रेड डेफिसिट और करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ रहा है और ये सब चीजें सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गई हैं। सरकार को ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर देनी चाहिए और फॉरेन करंसी के मुकाबले रुपए में स्थिरता लानी चाहिए।
भारतीय रुपया इस साल अब तक 15 फीसदी से ज्यादा गिर चुका है और हर दिन नए लो परजा रहा है। करंसी को लेकर आपका आउटलुक क्या है और इसके किस स्तर तक स्थिर होने कीउम्मीद है?
करंसी में आ रही गिरावट असल समस्या नहीं है, बल्कि यह संकट का लक्षण है। यह बुखार कीतरह है, जो कि बीमारी का लक्षण है। करंसी में आ रही गिरावट कमजोर बैलेंस बजट औरअत्यधिक खपत का लक्षण है, जिसका असर ट्रेड और करंट अकाउंट डेफिसिट में देखने को मिलरहा है। लंबी अवधि के दौरान रुपए को लेकर मेरा रुझान नकारात्मक है। कमजोर रुपए के कारणइन्फ्लेशन में और उछाल देखने को मिल सकता है।
ग्लोबल इन्वेस्टर्स को भारत की रेटिंग डाउनग्रेड किए जाने का डर सता रहा है, इसकी क्यासंभावनाएं हैं?
यह काफी संभव है कि भारत की रेटिंग डाउनग्रेड हो। भारतीय कंपनियों के ऊपर भारी डॉलरलायबिलिटी है और कमजोर रुपया उनके इंटरेस्ट पेमेंट को बढ़ा देगा।
मैक्रो इकनॉमिक मोर्चे पर मैं भारत को लेकर बहुत आशावादी नहीं हूं और इसका सीधा नाता सरकारी नीतियों से है। भारत सरकार की आर्थिक नीतियां असफल रही हैं। सरकार को और कोशिशें करनी चाहिए थीं। मौजूदा सरकार को देखते हुए यह आश्चर्य ही है कि इकॉनमी ने इतना बेहतर प्रदर्शन किया है।
भारतीय इकॉनमी संकट के दौर से गुजर रही है, मौजूदा इकनॉमिक क्राइसिस से निपटने के लिए आपके क्या सुझाव हैं?
भारत सरकार ने एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है, क्योंकि इसने इन्फ्लेशन या कॉस्ट ऑफ लिविंग की दरों में हुई बढ़ोतरी को नजरअंदाज किया है। इन्फ्लेशन का सही मायने में आकलन न करने के बावजूद सरकार ने रियल टर्म में इंटरेस्ट रेट्स निगेटिव रखी। इस वजह से फिस्कल डेफिसिट काफी ज्यादा है, ट्रेड डेफिसिट और करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ रहा है और ये सब चीजें सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गई हैं। सरकार को ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर देनी चाहिए और फॉरेन करंसी के मुकाबले रुपए में स्थिरता लानी चाहिए।
भारतीय रुपया इस साल अब तक 15 फीसदी से ज्यादा गिर चुका है और हर दिन नए लो परजा रहा है। करंसी को लेकर आपका आउटलुक क्या है और इसके किस स्तर तक स्थिर होने कीउम्मीद है?
करंसी में आ रही गिरावट असल समस्या नहीं है, बल्कि यह संकट का लक्षण है। यह बुखार कीतरह है, जो कि बीमारी का लक्षण है। करंसी में आ रही गिरावट कमजोर बैलेंस बजट औरअत्यधिक खपत का लक्षण है, जिसका असर ट्रेड और करंट अकाउंट डेफिसिट में देखने को मिलरहा है। लंबी अवधि के दौरान रुपए को लेकर मेरा रुझान नकारात्मक है। कमजोर रुपए के कारणइन्फ्लेशन में और उछाल देखने को मिल सकता है।
ग्लोबल इन्वेस्टर्स को भारत की रेटिंग डाउनग्रेड किए जाने का डर सता रहा है, इसकी क्यासंभावनाएं हैं?
यह काफी संभव है कि भारत की रेटिंग डाउनग्रेड हो। भारतीय कंपनियों के ऊपर भारी डॉलरलायबिलिटी है और कमजोर रुपया उनके इंटरेस्ट पेमेंट को बढ़ा देगा।
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