आर्थिक मोर्चे पर विफलता के मामले में लोकसभा में यूपीए सरकार चौतरफा घिर गई।
विपक्ष से लेकर सरकार को समर्थन दे रहे दलों ने भी सरकार को आगाह किया कि यदि समय रहते स्थिति पर नियंत्रण नहीं किया गया तो आर्थिक सुनामी जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।
रुपए की लगातार घटती कीमत से चिंतित सांसदों ने सरकार की आर्थिक नीतियों पर बरसते हुए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ठोस उपाय करने की मांग की।
लोकसभा में मानसून सत्र की इस पहली चर्चा में सरकार बदहाल अर्थव्यवस्था पर बचाव की मुद्रा में आ गई। विपक्ष ने कहा कि गलत आर्थिक नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था 1991 के संकट की ओर बढ़ रही है।
विपक्ष के निशाने पर वित्तमंत्री पी चिदंबरम के साथ ही अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया रहे।
भाजपा नेता व पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने चिदंबरम को अर्थव्यवस्था का इलाज करने में नाकाम डॉक्टर करार दे दिया। उन्होंने सरकार से कुर्सी छोड़ने की मांग करते हुए कहा कि उसे अब जनता के बीच जाना चाहिए।
लोकसभा में देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति पर विशेष चर्चा के दौरान सिन्हा ने कहा कि अर्थव्यवस्था बहुत ही बुरे दौर में है।
इस संकट की नींव 2008-09 में रख दी गई थी, जब सरकार ने चुनाव जीतने के लिए फिजूलखर्ची की। इसी फिजूलखर्ची का असर मुद्रास्फीति पर पड़ा।
निवेशकों को जब लगा कि मुनाफा नहीं होगा तो उन्होंने निवेश करना बंद कर दिया। इस पर रिजर्व बैंक ने ब्याज दर बढ़ा दी, जिसका विकास योजनाओं पर बुरा असर पड़ा।
सिन्हा ने कहा कि सरकार की अकर्मण्यता और फैसले न लेने की आदत से भी परिस्थितियां बिगड़ी।
भाकपा के गुरुदास दासगुप्ता ने कहा कि सरकार में अर्थशास्त्रियों की त्रिमूर्ति यानी प्रधानमंत्री, योजना आयोग के उपाध्यक्ष और वित्त मंत्री के बावजूद अर्थव्यवस्था हर क्षेत्र में न केवल सिकुड़ रही है बल्कि यह ‘दिवालिया’ हो गई है।
जदयू के शरद यादव, सपा के शैलेंद्र कुमार, टीएमसी के सौगत राय समेत विपक्षी दलों ने कहा कि हालात बहुत खराब हैं।
सांसदों ने कहा कि जब चालू खाता घाटा जीडीपी का पांच फीसदी पार कर गया है। सरकार पर बाह्य कर्ज 390 अरब डॉलर है, राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ रहा है और रुपए की कीमत गिर रही है। महंगाई लगातार बढ़ रही है, ऐसे में सरकार हालात को कैसे सुधारेगी।
सदस्यों ने कहा कि लोगों का जीवनस्तर लगातार गिर रहा है। जबकि सरकार ने बड़े घरानों और उद्योगपतियों के लिए दरवाजे खोल दिये हैं।
हालांकि कांग्रेस के भक्तचरण दास ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम देश को आश्वस्त कर चुके हैं कि चिंता की कोई बात नहीं है।
विपक्ष से लेकर सरकार को समर्थन दे रहे दलों ने भी सरकार को आगाह किया कि यदि समय रहते स्थिति पर नियंत्रण नहीं किया गया तो आर्थिक सुनामी जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।
रुपए की लगातार घटती कीमत से चिंतित सांसदों ने सरकार की आर्थिक नीतियों पर बरसते हुए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ठोस उपाय करने की मांग की।
लोकसभा में मानसून सत्र की इस पहली चर्चा में सरकार बदहाल अर्थव्यवस्था पर बचाव की मुद्रा में आ गई। विपक्ष ने कहा कि गलत आर्थिक नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था 1991 के संकट की ओर बढ़ रही है।
विपक्ष के निशाने पर वित्तमंत्री पी चिदंबरम के साथ ही अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया रहे।
भाजपा नेता व पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने चिदंबरम को अर्थव्यवस्था का इलाज करने में नाकाम डॉक्टर करार दे दिया। उन्होंने सरकार से कुर्सी छोड़ने की मांग करते हुए कहा कि उसे अब जनता के बीच जाना चाहिए।
लोकसभा में देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति पर विशेष चर्चा के दौरान सिन्हा ने कहा कि अर्थव्यवस्था बहुत ही बुरे दौर में है।
इस संकट की नींव 2008-09 में रख दी गई थी, जब सरकार ने चुनाव जीतने के लिए फिजूलखर्ची की। इसी फिजूलखर्ची का असर मुद्रास्फीति पर पड़ा।
निवेशकों को जब लगा कि मुनाफा नहीं होगा तो उन्होंने निवेश करना बंद कर दिया। इस पर रिजर्व बैंक ने ब्याज दर बढ़ा दी, जिसका विकास योजनाओं पर बुरा असर पड़ा।
सिन्हा ने कहा कि सरकार की अकर्मण्यता और फैसले न लेने की आदत से भी परिस्थितियां बिगड़ी।
भाकपा के गुरुदास दासगुप्ता ने कहा कि सरकार में अर्थशास्त्रियों की त्रिमूर्ति यानी प्रधानमंत्री, योजना आयोग के उपाध्यक्ष और वित्त मंत्री के बावजूद अर्थव्यवस्था हर क्षेत्र में न केवल सिकुड़ रही है बल्कि यह ‘दिवालिया’ हो गई है।
जदयू के शरद यादव, सपा के शैलेंद्र कुमार, टीएमसी के सौगत राय समेत विपक्षी दलों ने कहा कि हालात बहुत खराब हैं।
सांसदों ने कहा कि जब चालू खाता घाटा जीडीपी का पांच फीसदी पार कर गया है। सरकार पर बाह्य कर्ज 390 अरब डॉलर है, राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ रहा है और रुपए की कीमत गिर रही है। महंगाई लगातार बढ़ रही है, ऐसे में सरकार हालात को कैसे सुधारेगी।
सदस्यों ने कहा कि लोगों का जीवनस्तर लगातार गिर रहा है। जबकि सरकार ने बड़े घरानों और उद्योगपतियों के लिए दरवाजे खोल दिये हैं।
हालांकि कांग्रेस के भक्तचरण दास ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम देश को आश्वस्त कर चुके हैं कि चिंता की कोई बात नहीं है।
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