सजायाफ्ता सांसदों की सदस्यता बचाने के लिए लाए गए अध्यादेश पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का रोष और गुस्सा पार्टी का चेहरा भले ही बचा रहा हो, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए यह भारी पड़ गया। राहुल के विरोध को 'नौटंकी' करार देते हुए भाजपा ने प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग कर दी। पार्टी ने कहा कि अगर अध्यादेश के लिए जिम्मेदार लोग बने रहते हैं तो राहुल का विरोध सिर्फ दिखावटी ही माना जाएगा।
भाजपा के अलावा अन्य विपक्षी दलों ने भी राहुल के बयान पर निशाना साधा है। अध्यादेश आने के साथ ही इसका विरोध कर रही भाजपा को अब दोहरा मौका मिल गया।
चुनावी माहौल में खुद राहुल ने ही सरकार और प्रधानमंत्री की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर दिया है। गौरतलब है कि कैबिनेट में लिया गया फैसला जहां पूरी सरकार का होता है वहीं मुखिया होने के नाते प्रधानमंत्री सबसे आगे खड़े होते हैं।
भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा कि अगर यह अध्यादेश बेकार है तो संप्रग सरकार के अन्य फैसलों पर राहुल की क्या प्रतिक्रिया होगी। राहुल का बयान सिर्फ यह दिखाता है कि कांग्रेस और संप्रग दलों के अलावा पार्टी के अंदर भी मतभेद हैं। पार्टी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने कहा कि राहुल इस तरह की नौटंकी करते रहे हैं। पहले उत्तर प्रदेश में एक रैली के दौरान गुस्से में कागज फाड़ दिया था। अब अध्यादेश को फाड़ने की बात कर रहे हैं।
लेकिन अगर उन्हें सजायाफ्ता सांसदों को बचाने से आपत्ति थी तो इतनी देर तक क्यों चुप रहे। भाजपा ने राष्ट्रपति तक जाकर विरोध किया तो राहुल को भी साथ जाना चाहिए था। जब अहसास हुआ कि राष्ट्रपति अध्यादेश को लौटाने वाले हैं तो श्रेय लूटने की मंशा से विरोध कर दिया। मीनाक्षी ने कहा, 'प्रधानमंत्री राहुल के नेतृत्व में काम करने की इच्छा जताते रहे हैं।
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