अमेरिका और रूस शनिवार को एक समझौते पर सहमत हुए. इसके तहत सीरिया के रासायनिक हथियारों को मध्य 2014 तक खत्म कर दिया जायेगा. वहीं, अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चेतावनी दी कि कूटनीति असफल रहती है, तो सैन्य विकल्प खुले हैं. अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की तीन दिन की गहन वार्ता के बाद जिनेवा में यह समझौता हुआ.
केरी ने छह बिंदुओंवाली रूपरेखा तय की, जिसके मुताबिक सीरिया को एक हफ्तेल में अपने हथियारों के जखीरे की सूची सौंपनी होगी. अपने रासायनिक स्थलों तक ‘तत्काल बाधारहित पहुंच’ की अनुमति देनी होगी. लावरोव के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि निरीक्षक नवंबर तक वहां पहुंच जायेंगे और जखीरे को मध्य 2014 तक या तो हटाना होगा या नष्ट करना होगा.
बहरहाल, ओबामा ने बशर अल असद प्रशासन को चेतावनी दी कि वह वार्ता को ‘स्थगन युक्ति’ के रूप में नहीं ले. उन्होंने साप्ताहिक संबोधन में कहा, ‘चूंकि यह योजना अमेरिकी सैन्य कार्रवाई की धमकी के बाद तय हुई है, हम इलाके में अपनी सैन्य तैनाती को बरकरार रखेंगे, ताकि असद सरकार पर दबाव बना रहे.’ इस हफ्ते रूस की योजना के बाद दमिश्क ने 1993 के रासायनिक हथियार समझौते में शामिल होने के लिए आवेदन किया, जिससे अमेरिका के नेतृत्व में हमले की आशंका थोड़ी कम हुई.
भारत-अमेरिका में मतभेद
ओबामा प्रशासन ने सीरिया के खिलाफ सैन्य कार्रवाई को लेकर अमेरिका और भारत के बीच मतभेद स्वीकार करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को अंतरराष्ट्रीय कानून लागू करने की जरूरत है, लेकिन इसका कार्यान्वयन इस तरह से नहीं होना चाहिए कि असद जैसा व्यक्ति बच सके. अमेरिका के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘सामान्य तौर पर हम स्वीकार करते हैं कि भारत सैन्य कार्रवाई को लेकर आम तौर पर चुप रहा है और सुरक्षा परिषद पर ज्यादा जोर देता रहा है.’
रिपोर्ट का करें इंतजार
संयुक्त राष्ट्र. संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा है कि विश्व संस्था के जांचकर्ताओं की ‘पुख्ता रिपोर्ट’ आयेगी, जो बतायेगी कि 21 अगस्त को सीरिया में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया था. हमलों के लिए जिम्मेदार कौन हैं.
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