तमाम सियासी पैंतरेबाजी के बाद आखिरकार कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सामने यूपीए सरकार ने घुटने टेक ही दिए। सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए लाए गए अध्यादेश को कैबिनेट ने वापस लेने का फैसला किया है। बुधवार की शाम 6 बजे सिर्फ 15 मिनट के लिए कैबिनेट की बैठक हुई। बैठक में यूपीए के सहयोगी दलों की नाराजगी को भी नजरअंदाज कर दिया गया। इतना ही नहीं, सरकार अब दागी नेताओं को बचाने वाले बिल को भी वापस लेगी।
कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने बताया कि यह फैसला कैबिनेट की बैठक में सर्वसम्मति से लिया गया। उन्होंने बताया कि संसद के अगले सत्र के दौरान संबंधित बिल भी तय प्रक्रिया के मुताबिक वापस ले लिया जाएगा। उन्होंने इस बात से इन्कार किया कि गांधी के सामने केबिनेट बौनी पड़ गई बल्कि उन्होंने कहा कि आज के इस फैसले से जाहिर है कि सरकार अधिनायकवादी नहीं है और वह लोगों की भावनाआें की कद्र करती है, जिसकी अभिव्यक्ति कांग्रेस उपाध्यक्ष ने की थी।
यह पूछने पर कि कई मंत्री इस अध्यादेश के पक्ष में थे लेकिन गांधी के बयान के बाद केबिनेट को झुकना पड़ा, तिवारी ने कहा कि उन्होंने खुद और अनेक मंत्रियों इस अध्यादेश के पक्ष मंे राय रखी थी लेकिन सरकार के प्रवक्ता होने के नाते उस समय उनका फर्ज बनता था कि कैबिनेट का पूरा परिप्रेक्ष्य सामने रखा जाए और अब जबकि कैबिनेट ने पुनर्विचार किया है तो नया परिप्रेक्ष्य बताया जाए। अध्यादेश को वापस लेने के लिए दिन भर चली छवि बचाने की राजनीतिक कवायद के तहत बुधवार सुबह से मुलाकातों और बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ। इसकी शुरूआत गांधी की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात से हुई और अध्यादेश वापस लेने के लिए कैबिनेट की शाम को बैठक हुई। अमेरिका की पांच की दिन की यात्रा से मंगलवार रात ही लौटे प्रधानमंत्री से गांधी की मुलाकात के तुरंत बाद कांग्रेस के कोर गु्रप की बैठक हुई और पार्टी में हुई सहमति के बाद डा. सिंह राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मिले।
राष्ट्रपति को बेल्जियम की यात्रा के लिए आज ही रवाना होना था, लिहाजा प्रधानमंत्री की यह मुलाकात अपरिहार्य हो गई थी। कैबिनेट ने अध्यादेश लाने का फैसला 24 सितंबर को लिया था और इस पर मुहर लगाने के लिए राष्ट्रपति को भेजा था लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने इसे असंवैधानिक और अनैतिक करार देते हुए राष्ट्रपति से भेंट कर उनसे इस पर हस्ताक्षर नहीं करने का आग्रह किया था। इसके बाद राष्ट्रपति ने दो केंद्रीय मंत्रियों को तलब कर अध्यादेश के बारे में स्पष्टीकरण पूछे थे । अध्यादेश का वापस होना उसी समय सुनिश्चित हो गया था जब कांग्रेस उपाध्यक्ष ने सरकार के इस कदम को गलत बताया था और अध्यादेश को बकवास बताकर उसे फाड़ कर फेंकने की बात कही थी।
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