'मदर टेरेसा कुछ भी रही हों लेकर वह एक संत नहीं थीं।' यह दावा मदर टेरेसा पर रिसर्च करने वाले कनाडा के रिसर्चर्स ने किया है। उन्होंने मदर टेरेसा के दीन-दुखियों के मदद के तरीके को संदेहास्पद करार देते हुए कहा कि उन्हें प्रभावशाली मीडिया कैंपेन के जरिए महिमामंडित किया गया। यहीं नहीं, उन्होंने मदर टेरेसा को धन्य घोषित किए जाने पर वेटिकन पर भी सवाल उठाए हैं। रिसर्चर्स ने मदर टेरेसा के फाउंडेशन के पैसे के लेने-देन को भी संदेहास्पद करार दिया है।
यह स्टडी धर्म और विज्ञान पर आधारित मैगजीन 'रिलीजस' में इस महीने छपने वाली है। स्टडी में कहा गया है कि वेटिकन ने मदर टेरेसा के अहम मानवीय पक्ष को नजरंदाज किया। बीमार लोगों को मिलने वाली राहत के बजाय उनकी पीड़ा को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता था। रिसर्चर्स का कहना है कि बीमार को ठीक करने का चमत्कार मदर टेरेसा नहीं बल्कि दवाई ने किया। रिसर्चरों का कहना है कि मदर टरेसा को महिमामंडित वेटिकन ने खाली होते चर्चों को देखते हुए किया। जिससे लोगों को धर्म की ओर लौटाया जा सके।
यह रिसर्च यूनिवर्सिटी ऑफ मॉंन्ट्रियल्स के सर्गे लेरिवी और जेनविएव और यूनिवर्सिटी ऑफ ओटावा के करोल ने की है। उन्होंने अपनी स्टडी में मदर टेरेसा के बारे में छपे लेखों का अध्ययन किया। स्टडी में दावा किया कि मदर टेरेसा की इमेज दरअसल खोखली थी। यह तथ्यों के आधार पर नहीं थी। बेहतर मीडिया कैंपेन के जरिए उनको महिमामंडित किया गया।
लेरिवी ने दावा किया कि वेटिकन को धन्य घोषित करने से पहले गरीबों की सेवा के उनके संदेहास्पद तरीके पर गौर नहीं किया गया। उनके पॉलिटिकल कॉन्टैक्ट्स, फाउंडेशन को मिल रहे पैसे के संदेहास्पद हिसाब पर भी गौर नहीं किया गया।
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