हम देख रहे हैं की आजकल कई लेखक और कवि अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा रहे हैं। उनके अनुसार वे भारत मे "धार्मिक असहिष्णुता का उदय" देख रहे हैं। ये सभी लोग साहित्य जगत के दिग्गज हैं, उनका लेखन बोलता है इसलिए हम उनके लेखन का छिद्रान्वेषण नहीं करेंगे। हम सिर्फ उनके बारे मे समान्य ज्ञात पहलुओं पर ध्यान देंगे।
- नयनतारा सहगल : नयनतारा पंडित जवाहरलाल नेहरू की भांजी अर्थात नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित की बेटी है। जब नेहरू के दोहिते राजीव गांधी सत्ता मे थे तब 1986 मे इन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। नयनतारा अपनी जड़ें कश्मीरी पंडितों से जोड़ती हैं लेकिन 90 के दशक मे जब पूरी कश्मीर घाटी को हिन्दू विहीन कर दिया गया, बलात्कार किए गए, हत्याएँ की गयी, घर तोड़े गए और ना जाने क्या क्या अमानुषिक अत्याचार किए गए तब नयनतारा ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की नहीं सोची।
- उदय प्रकाश : ये वे लेखक हैं जिन्होने इसकी शुरुआत की है। ये साहब जवाहरलाल नेहरू विश्वविध्यालय के उत्पाद है और अपने आपको मार्क्सवादी कहते हैं। कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ इंडिया के सदस्य रहे हैं। इन साहब को 2010 मे साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। 2006 मे अरुंधति राय ने साहित्य अकादमी पुरस्कार अस्वीकार कर दिया था। अकादमी के बारे मे अरुंधति के विचार ऐसे थे: - वे अकादमी को स्वायत्त बोलते हैं, लेकिन ये अन्य सांख्यिकीय संस्थानो की तरह है, इसमे दलाल, समझौते कराने वाले लोग भरे हैं, इसमे लोग सिस्टम को व्यक्तिगत लाभ के लिए, अवार्ड के लिए खराब कर रहे हैं।
- काशीनाथ सिंह : इन्हे 2011 मे साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। इनहोने मुजफ्फर नगर मे हुए दंगो के विरोध मे साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस नहीं किया। और तो और उस समय इनहोने उत्तर प्रदेश का सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार भी ले लेने मे जरा भी हिचक नहीं हुई। काशी नाथ सिंह वो साहब हैं जिन्होने वाराणसी मे मोदी के खिलाफ अभियान चलाया।
- मुनव्वर राणा : इनको मोदी सरकार के समय 2014 मे साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। इहोने ने सोनिया गांधी के त्याग और बलिदान पर उनके प्रचार प्रसार के लिए कविता लिखी थी। सबसे तगड़ी बात तो ये है की ये साहब अवार्ड को लौटने से कुछ दिन पहले ट्वीट करके अवार्ड लौटाने वालों के खिलाफ बोल रहे थे। इन्होने कहा था की जो भी लोग अवार्ड लौटा रहे हैं वे आऊटडेटेड लोग हैं। अवार्ड लौटाना बच्चों के खेल जैसा है। मैं लेखकों को सलाह देता हूँ की वे भूख हड़ताल करें, जिसमे मैं भी भाग लूँगा। साहित्य अवार्ड लौटाने वाले कलाम की ताकत मे अपना विश्वास खो चुके हैं। मैं सोचता हूँ की ये अवार्ड इसलिए लौटा रहे हैं ताकि इनको अगली सरकार मे इससे भी बड़ा पुरस्कार मिल सके।
- अशोक वाजपेयी : इन्हे 1994 मे साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। आउटलूक मे प्रकाशित एक लेख "the literary mafia" के अनुसार "मध्यप्रदेश मे अर्जुन सिंह द्वारा लगातार संरक्षण दिये जाने से वाजपेयी की शक्ति बढ़ी जब की अर्जुन सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। साहित्य अकादमी के दूसरे पुरस्कृत विद्वान उदय प्रकाश वाजपेयी को दो पुरस्कारों के अयोग्य पाते हैं। वे उन्हे "कवि के भेष मे सत्ता का दलाल" बताते हैं। 2014 के लोक सभा चुनाव मे वाजपेयी ने मोदी के खिलाफ अभियान चलाया। वाजपेयी मोदी की गुजरात सरकार को बर्खास्त करने के लिए एक याचिका पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक थे।
- के सच्चिदानंदन : ये साहब भी मोदी की गुजरात सरकार को बर्खास्त करने के लिए एक याचिका पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक थे। सच्चिदाननदान के गृह राजी केरल की एक घटना जिसमे की इस्लामिक कट्टरपंथियों ने एक प्रोफेसर पर हमला किया था और मुहम्मद साहब और अल्लाह के खिलाफ लिखने के लिए प्रोफेसर का हाथ काट दिया गया था। इस घटना पर जब सच्चिदानंदन की प्रतिक्रीया चाहिए गयी तब इन्होने कहा "मैं सारे मामले का अध्ययन किए बिना कोई बयान नहीं दे सकता। लेकिन मुजह लगता है की ये सारा घटनाक्रम मुसलमानो की छवि बिगाड़ने के लिए किया गया है"
- सारा जोसेफ : इन साहिबा को ये पुरस्कार 2011 मे दिया गया। और 2014 के लोक सभा चुनाव मे ये साहिबा केरल के थ्रिसुर से आम आदमी पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ने वाली उम्मीदवार थी। 10 अक्टूबर 2015 तक आम आदमी पार्टी के केरल यूनिट की स्टेट कन्वेनर रही है।
सारा जोसेफ - & 9. अजमेर औलख और आत्मजीत सिंह : ये दोनों पंजाबी लेखक हैं। और इन दोनों ने 2014 के लोक सभा चुनाव मे "मोदी विरोधी अपील" की।
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