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Tuesday, September 3, 2013

जर्मन लड़की का भारतीय अनुभव: इटली में पुरुष घूरें तो सही और भारत में घूरें तो पाप

Yugal     1:04 PM  No comments

अमेरिकी छात्रा मिशेल क्रॉस का एक पोस्‍ट इंटरनेट पर खूब वायरल हुआ था, जिसमें उन्‍होंने आपबीती लिखी थी. उन्‍होंने लिखा था कि किस तरह भारत में स्‍टडी ट्रिप के दौरान लोग उन्‍हें घूरते थे, उनका पीछा करते थे और यहां तक कि उनका रेप करने की भी कोशिश की गई. और इन सब की वजह से वह पर्सनैलिटी डिस्‍ऑर्डर का शिकार हो गईं.

अब एक और विदेशी लड़की जेन ने भारत में अपने अनुभव के बारे में लिखा है. नीली आंखों वाली इस जर्मन लड़की का कहना है कि भारत में उसका अनुभव मिशेल क्रॉस से बिलकुल अलग रहा.
जेन का अनुभव उन्‍हीं की जुबानी:
मैं अब तक कई बार मिशेल क्रॉस के भारतीय अनुभव के बारे में पढ़ चुकी हूं. जिन लाखों लोगों ने यह ब्‍लॉग पड़ा है, मैं उनसे अलग नहीं हूं. लेकिन फर्क यह है कि मैं भी क्रॉस की तरह उस खौफनाक अनुभव से गुजर चुकी हूं क्‍योंकि मैं अकेले भारत जाती रहती हूं. और हां, मैं भी व्‍हाइट हूं, मैं अपने 20वें बरस में हूं और एक विदेशी महिला हूं.

मैंने अकेले भारत के कई इलाकों की यात्रा की है और पिछले दो महीनों से दिल्‍ली में रह रही हूं. मेरा अनुभव काफी सकारात्‍मक और रोमांचक है और मैं मेरे प्रति भारतीयों के आतिथ्‍य से काफी अभिभूत हूं.

मेरे लिए भारत अलग क्‍यों है? क्‍या मैं वाकई में सिर्फ खुशकिस्‍मत हूं? या मैं खुद के लिए अलग बर्ताव की चाहत में भारत को अलग नजरिए से देखती हूं? मैं यहां पर मिशेल के अनुभव से अपने अनुभव की तुलना कर रही हूं ताकि मैं यह समझा सकूं कि मैं क्‍या कहना चाहती हूं.

क्‍या भारतीय पुरुष मुझे घूरते हैं? हां, वे ऐसा करते हैं... और भारतीय महिलाएं और बच्‍चे और यूरोपीय मुसाफिर भी ऐसा करते हैं. वे मुझे उसी कौतुहल से देखते हैं जैसे अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, पूर्वी और दक्षिणी यूरोप और दूसरे एशियाई देशों की यात्राओं के दौरान वहां के लोग मुझे देखते थे. मुझे लगता है कि विदेश से आए किसी व्‍यक्ति को इस तरह से देखना स्‍वाभाविक है. मैं अपनी इरिट्रेयाई (अफ्रीक महाद्वीप का सुदूर पूर्व देश इरिट्रेया) दोस्‍त को उत्तरी जर्मनी स्थित अपनी दादी के गांव ले गई थी. उस इलाके में विदेशी ना के बराबर आते हैं. वहां हर कोई उसे घूर-घूरकर देखता था.

जब इटली के पुरुष मुझे घूरते थे तो उसे "Ciao Bella"! कह दिया जाता था. इटली के माचो कल्‍चर में फ्लर्ट के इस तरीके का स्‍वागत किया जाता है. भारत में इसे यौन शोषण के रूप में देखा जाता है. इटली के पुरुष अगर घूरें तो वह तारीफ और भारतीय पुरुष घूरें तो वह पाप. ऐसा क्‍यों?

(आपको बता दें कि इटली में जब आप किसी से पहली बार मिलते हैं और उससे दोस्‍ताना तरीके से हाय या बाय कहते हैं तो उसे Ciao कहा जाता है. वहीं, किसी महिला को देखकर Bella कहने का मतलब है खूबसूरत.)
क्‍या लोग मेरी तस्‍वीरें खींचते हैं? हां, वे ऐसा करते हैं... लेकिन मैं उनकी और भी ज्‍यादा तस्‍वीरें खींचती हूं! हम पश्चिमी लोग ज्‍यादातर बिना इजाजत लिए भारत के हर स्‍मारक, जगह और लोगों की तस्‍वीरें लेते हैं. इन तस्‍वीरों को हम अपने फेसबुक पेज और ट्रैवल ब्‍लॉग पर पोस्‍ट भी करते हैं. लेकिन अगर कोई भारतीय किसी यूरोपीय की फोटो लेता है तो हम चिढ़ जाते हैं और हमें लगता है कि हमारी निजता में दखल दिया जा रहा है. क्‍या फिर से यहां दोहरे मापदंड नहीं अपनाए जा रहे हैं? गोरी चमड़ी का विशेषाधिकार भूरी चमड़ी वालों के लिए सजा है?

क्‍या सामाजिक कार्यक्रमों में मैं आकर्षण का केंद्र रहती हूं? हां, मैं होती हूं. यह भारतीयों के आतिथ्‍य का ही नतीजा है कि मुझे पांच शादियों और कई त्‍योहारों में शामिल होने का मौका मिला. जब मैं डांस करती थी, ढेर सारे लोग मेरे साथ डांस करना चाहते थे और कई लोगों ने मेरे फोटो लिए और वीडियो भी बनाए. मैं उन समारोहों में अकेली व्‍हाइट महिला थी और बहुत सारे लोगों ने कभी किसी व्‍हाइट महिला को बॉलीवुड गानों में थिरकते हुए नहीं देखा था. मेरे केस में भारतीय समारोहों में मुझे जो तवज्‍जो मिली वह कोसोवो के एक वेडिंग रिसेप्‍शन के दौरान मिले स्‍वागत और कौतुहल से अलग नहीं था.

कई भारतीयों ने मुझे अपने घर आमंत्रित किया और गरीब से गरीब परिवारों ने मुझे खाना खिलाया. मुझे होटलों में बहुत कम ही रहना पड़ा क्‍योंकि भारतीय मुझे उनके घर में रहने को कहते थे और वे मेरे लिए अपनी पत्‍नी के कजिन या दोस्‍त के घर में रहने का इंतजाम भी करते थे. कई मौकों पर ढाबे के मालिकों और फल बेचने वालों ने मुझसे यह कहते हुए पैसे नहीं लिए मैं भारत की मेहमान हूं.

क्‍या कोई मेरे भारतीय अनुभव का अंदाजा लगा सकता है? नहीं, कोई नहीं. और तो और कोई भी ऐसा नहीं कर सकता और किसी को करना भी नहीं चाहिए. भारत में दुनिया की छठवीं आबादी रहती है. भारत में ढेर सारे भारतीय हैं. सभी मुसाफिर बहुत कम भारतीयों से बातचीत करते हैं और इसलिए वे भारतीय अनुभव के बारे में बहुत कम ही बता सकते हैं. लेकिन मेरा मानना है कि हम अपने अनुभव खुद बनाते हैं, जैसे हमारे अनुभव हमें बनाते हैं.

मुझे अच्‍छे से हिंदी आती है, लेकिन जब नहीं आती थी, तब हिंदी के कुछ शब्‍द बोलने पर ही मेरे आसपास के लोगों झट से आवभगत करने लगते थे और इससे मेरे अंदर सुरक्षा की भावना बढ़ जाती थी. मैं आमतौर पर खुद को हालात के हिसाब से ढाल लेती हूं, मुझे संदेह कम होता है और मैं ज्‍यादा भरोसा करती हूं. जैसे अभी हाल ही में मैं अपनी एक अंग्रेज दोस्‍त के साथ कसौली गई थी. हमने कुर्ती और चूड़ियां पहनीं और इस दौरान चायवाले, पंडित और दूसरे भारतीय पर्यटकों समेत कई लोगों से बातचीत की और मजाक भी किया. मेरे दोस्‍त के दोस्‍त ने हमसे कसौली देखने का आग्रह किया और हमें गांव में आमंत्रित किया. हमने उसके परिवार के साथ डिनर में लजीज दाल, सब्‍जी और चावल खाए. हमने उनके परिवार की फोटो एलबम भी देखी.

मुझे लगता है कि अगर भारतीयों के प्रति दोस्‍ताना रवैया अपनाया जाए तो हर मुसाफिर का अनुभव रोमांचक और 'रियल' होगा.
मैं यह सुझाव नहीं दे रही हूं कि भारत महिलाओं के लिए स्‍वर्ग है. आपको मुझसे रोजाना होती छेड़छाड़, यौन शोषण और कन्‍या भ्रूण हत्‍या जैसी निराशाजनक वारदातें सुनने की जरूरत नहीं. हालांकि भारत में मेरा अनुभव और मेरे प्रति भारतीयों का रवैया बहुत ही सकारात्‍मक रहा है. मेरे कई दोस्‍तों का अनुभव भी कुछ इसी तरह का रहा है. मैं उम्‍मीद करती हूं कि मिशेल के साथ हुए बर्ताव के बजाए भारत दूसरे विदेशी मुसाफिरों के साथ भी वैसा ही बर्ताव करेगा जैसा मेरा साथ किया गया.

जल्‍द ही मैं अपनी पढ़ाई के लिए लंदन चले जाऊंगी. मुझे अपनी जिंदगी बिना खास देख-रेख के बितानी होगी, जहां चायवालों के घर का खाना नहीं होगा, चाट पापड़ी नहीं होगी, बॉलीवुड के गानों पर डांस नहीं होगा और ना पूजा ही होगी.


शायल में वहां एडजस्‍ट करने से इनकार कर दूं और अगले साल वापस भारत आ जाऊं.

……
आपको बता दें कि 21 वर्षीय जेन वोन रेबनाउ जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में पली बढ़ी हैं. वे लंदन स्‍कूल ऑफ इकोनॉमिक्‍स से मनोविज्ञान और अर्थशास्‍त्र की पढ़ाई कर रही हैं. वह फिलहाल समर इंटर्नशिप के लिए भारत आईं हुईं हैं. वे कई देशों की यात्रा कर चुकी हैं.



Yugal


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