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Tuesday, September 26, 2017

ओनेक ओबव्वा - साधारण सी स्त्री बन गयी साक्षात रणचंडी, जिसने दुश्मन की लाशों के ढेर लगा दिये

अनुचर     9:09 AM  No comments

अपने देश की मिट्टी मे वो ताक़त है की साधारण सा दिखाई देने वाला व्यक्ति भी महाबलशाली बन जाता है। ऐसे हजारों महाबली हमारे देश मे पैदा हुए, लेकिन उनमे से कइयों के नाम वक़्त के साथ खो गए। 
आज एक ऐसी साधारण स्त्री की वीरता को याद करेंगे, जो थी तो साधारण से शरीर की लेकिन उसका आत्मबल इतना ऊंचा था की उसने दुशमन के सैनिकों की लाशों के ढेर लगा दिये । 


मुसमिल आक्रांता हैदर अली की फौज ने चित्रदुर्ग के किले को चारों तरफ से घेर लिया था । हैदर अली की फौज किसी भी वक़्त हमला करना चाहती थी। उसके सैनिको के गले खून की प्यास से सूख रहे थे। 

लेकिन चित्रदुर्ग के शासक थे मद्करी नायक। चित्रदुर्ग की सेना भी किले की दीवारों के पीछे तैनात हो गयी। किले की प्राचीरों पर पहरेदार डट गए। इतनी जबर्दस्त किलेबंदी की हैदर अली किले पर हमला करने की जुर्रत नहीं कर पा रहा था। उसे समझ ही नहीं आ रहा थी की किस तरफ से हमला करूँ।

किले की एक प्राचीर पर एक पहरे दार का पहरा था। उसका नाम था कहले मुड्डा। कहले मुड्डा को उसकी पत्नी खाना खाने के लिए बुलाने आई।

उसका नाम था ओबव्वा

वो नीचे से चिल्लाई।

अजी सुनते हो ! खाना खालों आकर

वहीं नीचे चट्टानों के बीच मे बनी एक गुफा मे पहरेदार का घर था । पहरेदार को लेकर वो अपने घर चली आई। उसे थाली मे भोजन परोसकर पानी लेने उठी तो देखा घर मे पानी ही नहीं था। इतने मे ही ओबव्वा के पति ने पानी मांगा। ओबव्वा ने मटका उठाया और पानी लेने ऊंचे टीले पर चल पड़ी। ऊंचे टीले पर साल भर मीठा पानी रहता था।

लेकिन तभी एक गड़बड़ हो चुकी थी।

चट्टानों के बीच मे एक छोटी सी झिर्री बनी हुई थी

वो झिर्री इतनी चौड़ी थी की एक व्यक्ति मुश्किल से उसमे से निकल पाता था। ओबव्वा उसी झिर्री से निकालकर पानी भरने आई थी।

लेकिन ओबव्वा को किसी ने देख लिया था ।

हैदर अली ने ओबव्वा को झिर्री से निकालकर ऊपर जाते हुए देख लिया था । उसे किले मे घुसने का रास्ता मिल गया था।

उसने अपने सैनिकों को उस झीरी से होकर किले के अंदर घुसने का आदेश दिया । लेकिन उस झिरी की कम चौड़ाई के कारण एक एक करके ही अंदर घुसा जा सकता था ।

एक सैनिक उस झिरी से अंदर जाने का प्रयास करने लगा। जैसे ही उसका सिर झिरी के पार निकला ओबव्वा की नजर उस पर पड़ गयी।


टीले पर खड़ी ओबव्वा ने उस सैनिक का सर देख लिया था। ओबव्वा ने मटका फटका और घर की और दौड़ गयी। ओबव्वा ने घर मे रखा धान कूटने का मोटा डंडा उठा लिया। अपने पति जरा सी भी भनक नहीं लगने दी।

इस डंडे को ओनेक कहते हैं।

तब तक दुशमन का सैनिक झिर्री मे से आधा घुस चुका था। ओबव्वा दबे पाँव झिर्री के पास गयी। 
 

ओबव्वा ने अपने शरीर की पूरी शक्ति से सनिक के सर पे प्रहार कर दिया ।

सैनिक का सर तुरंत फट गया,

उसकी आत्मा तुरंत इस संसार को छोड़ गयी।


इससे पहले की दूसरा सैनिक अंदर घुस पाता, ओबव्वा ने मारे हुए सैनिक को एक तरफ घसीट के पटक दिया।

जैसे ही दूसरे सैनिक का माथा आया, उसके भी सर पर ओबव्वा ने जोरदार प्रहार कर दिया।

वो भी तुरंत मर गया

जैसे जैसे सैनिक अंदर घुस रहे थे, ओबव्वा उन्हे मारती जा रही थी।

उनकी लाशों को एक तरफ घसीट घसीट के पटकती जा रही थी।

वहाँ लाशों का ढेर लग गया था, वो रणचंडी बन चुकी थी, उसका चेहरा लाल हो गया था, लाशों के ढेर लग गए थे।

एक भी सैनिक अंदर आकर जिंदा नहीं बच सका।

वहाँ अगर कोई चीज चल रही थी, तो वो थी ओबव्वा की भुजाएँ और ओबव्वा का ओनेक।

इधर ओबव्वा का पति अपना भोजन समाप्त कर चुका था। पानी नहीं होने के कारण वो ओबव्वा को ढूंढता हुआ बाहर आया

बाहर का दृश्य देखकर उसकी भी आंखे फट गयी। वो अपनी पत्नी मे साक्षात रणचंडी को देख रहा था।

कभी लाशों के ढेर को देखता, कभी सनिकों के सर पर पढ़ते ओबव्वा के प्रहारों को देखता।

 
तभी ओबव्वा चिल्लाई


मुझे क्या देख रहे, ऊपर जाओ, तुरही बजाकर राजा को सावधान करो


पहरेदार तुरंत ऊपर भागा। उसकी तुरही ज़ोर ज़ोर से बजने लगी। जैसे ही तुरही गूंजी चित्रदुर्ग की सेना मोर्चे पर आ गयी

ऊपर पहरेदार तुरही बजा रहा था। नीचे ओबव्वा सब सैनिकों का उत्साह बढ़ा रही थी।


चित्रदुर्ग के सैनिक किले के बाहर खड़े हैदर अली की फौज से भिड़ गए।

ओबव्वा अभी भी वहीं खड़ी थी

तभी एक और मुस्लिम सैनिक झिर्री मे से निकला, वो दबे पाँव धीरे धीरे ,ओबव्वा के पीछे आया, वो ओबव्वा की पीठ पीछे ओबव्वा के नजदीक पहुंच गया।


ओबव्वा अभी तक असावधान थी।

रणचंडी का रूप धर लाशों के ढेर लगाने वाली ओबव्वा के पीछे दुष्ट आ खड़ा हुआ था। ओबव्वा चित्रदुर्ग के सैनिकों का उत्साह बढ़ा रही थी ।

दुष्ट उसकी पीठ मे तलवार मारना चाहत था।

और

बिना एक पल की भी देर किए, उस दुष्ट ने ओबव्वा की पीठ मे तलवार घोंप दी। गिरते गिरते भी ओबव्वा ने अपना ओनेक उस दुष्ट सैनिक के सर पर दे मारा।

उसका भी उसी समय सर फट गया


ऐसी शूरवीर थी ओबव्वा

आज भी आप चित्रदुर्ग के किले मे घूमने जाएँगे तो आपको वो झिर्री दिखाई देगी

उस झिर्री का नाम ओबव्वा कीण्डी रखा गया है

ओबव्वा के नाम से चित्रदुर्ग मे एक बहुत बड़ा स्टेडियम भी है




कहानी का विडियो






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