बासमती चावल चावल की सबसे अच्छी किस्म है। बासमती चावल दुनिया भर मे अपनी विशिष्ट खुशबू एवं स्वाद मे प्रसिद्ध है। "बासमती" मे 'बास' का अर्थ गंध होता है अर्थात खुशबू वाला चावल। इसका अन्य अर्थ कोमल या मुलायम चावल भी होता है।
बासमती चावक का दाना दुनिया भर मे अपनी अत्यधिक लंबाई और खुशबू के लिए जाना जाता है। इसकी न केवल राष्ट्रीय, वरन अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ारों में भी अत्यधिक मांग है। भारत अरबों डॉलर का बासमती चावल निर्यात करता है। भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। उसके बाद पाकिस्तान, नेपाल और बांग्ला देश मे इसकी खेती होती है।
बासमती चावल का पारंपरिक पौधा अपेक्षाकृत लंबा और पतला होता है, ये पौधा तेज हवा को सह नहीं पाता है इस कारण अन्य चावल की क़िस्मों की अपेक्षा बासमती मे थोड़ी कम पैदावार होती है लेकिन जितनी भी होती है उच्च श्रेणी की होती है। यह भारत और अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही बाज़ारों मे ऊंचे दामो पर बिकता है।
बासमती च्वल सफ़ेद या भूरे रंग का होता है। इसमे एक खास स्वाद होता है जो की पेंडन का स्वाद कहा जाता है। बासमती की भी कई तरह की किसमे होती है। जैसे की बासमती370, बासमती 385, बासमती रणबीरसिंघ पूरा(आरएस पूरा) और संकर यानि की हाइब्रिड किस्मों मे पूस बासमती1 जिसे टोडल भी कहते हैं। लेकिन ये हाइब्रिड किसमे बासमती के स्टॉक से ही बनाई जाती है। इन्हे शुद्ध नहीं माना जाता।
विशुद्ध बासमती चावल की खेती समतली मैदानो मे की जाती है।
बिरयानी बनाने मे बासमती चावल का ही उपयोग किया जाता है। इन चावलों को पकाने के बाद ये चावल पककर लेसदार नहीं होता। बल्कि मे ये चावल खिला खिला और चिपचिपाहट रहित होता है।
बासमती चावल के पेटेंट को लेकर भी खूब विवाद हुआ। इसका पेटेंट अमरीका की एक संस्था ने करा लिया था। जिस पर राजनयिक स्तर पर विवाद बढ़ गया था। लेकिन बाद मे भारत ये युद्ध जीत गया नहीं तो यहाँ के किसानो को बहुत घाटा होता। अब भारत सरकार ने इसपर से निर्यात कर भी हटा दिया है।
बासमती के जीआई को लेकर जबर्दस्त भी विवाद चल रहा था। लेकिन अब भारतीय बासमती चावल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान मिल गयी है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान ने स्वीकार किया है कि बासमती चावल का उत्पादन गंगा के मैदानी इलाकों में होता है। बासमती चावल के निर्यात से भारत को सालाना 29,000 करोड़ रुपये की आय होती है। यह पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब और भारत के 77 जिलों में उगाया जाता है। भौगोलिक पहचान यानी जीआइ टैग से तात्पर्य उन इलाकों को चिह्नित करने से है, जहां बासमती की परंपरागत तौर पर खेती होती रही है। यहां के चावल की खुशबू और चावल की लंबाई अपने आप में अनोखी तो होती ही है, चावल का स्वाद भी अनूठा होता है। इसका ट्रेडमार्क और पेटेंट किया जाता है। चेन्नई स्थित बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (आइपीएबी) ने हाल में बासमती चावल से संबंधित सभी पक्षकारों की दलीलों की सुनवाई पूरी कर ली है। इसमें किसान, निर्यातक, बीजों की किस्म तैयार करने वाले कृषि वैज्ञानिक और पाकिस्तान के प्रतिनिधि प्रमुख हैं।
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